मजार शरीफ पर जाना कैसा।

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              *_सुन्नी और मज़ार_*   
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_किसी की क़ब्र पर इमारत बना देना ही मज़ार कहलाता है,अल्लाह के मुक़द्दस बन्दों की मज़ार बनाना और उनसे मदद लेना जायज़ है,पढ़िये_

*_👇मज़ार बनाना👇_*

_(1) तो बोले उनकी ग़ार पर इमारत बनाओ उनका रब उन्हें खूब जानता है वह बोले जो इस काम मे ग़ालिब रहे थे कसम है कि हम तो उन पर मस्जिद बनायेंगे_

*_📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 21_*

*_👇तफसीर👇_*

_असहाबे कहफ 7 मर्द मोमिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की उम्मत के लोग थे बादशाह दक़्यानूस के ज़ुल्म से तंग आकर ये एक ग़ार मे छिप गये जहां ये 300 साल तक सोते रहे 300 साल के बाद जब ये सोकर उठे और खाने की तलाश मे बाहर निकले तो उनके पास पुराने सिक्के देखकर दुकानदारो ने उन्हे सिपाहियों को दे दिया उस वक़्त का बादशाह बैदरूस नेक और मोमिन था जब उस को ये खबर मिली तो वो उनके साथ ग़ार तक गया और बाकी तमाम लोगो से भी मिला असहाबे कहफ सबसे मिलकर फिर उसी ग़ार मे सो गये जहां वो आज तक सो रहें हैं हर साल दसवीं मुहर्रम को करवट बदलते हैं हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर मे उठेंगे और आपके साथ मिलकर जिहाद करेंगे बादशाह ने उसी ग़ार पर इमारत बनवाई और हर साल उसी दिन वहां तमाम लोगों को जाने का हुक्म दिया_

*_📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान,सफह 354_*

*_👇मज़ार पर जाना👇_*

_(2) हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसललम इरशाद फरमाते हैं कि मैंने तुम लोगों को क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था अब मैं तुम को इजाज़त देता हूं कि क़ब्रों की ज़ियारत किया करो_

*_📕 मुस्लिम,जिल्द 1,हदीस 2158_*

_(3) खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम हर साल शुहदाये उहद की क़ब्रो पर तशरीफ़ ले जाते थे और आपके बाद तमाम खुल्फा का भी यही अमल रहा_

*_📕 शामी,जिल्द 1,सफह 604_*
*_📕 मदारेजुन नुबुव्वत,जिल्द 2,सफह 135_*

_जब एक नबी अपने उम्मती की क़ब्र पर जा सकता है तो फिर एक उम्मती अपने नबी की या किसी वली की क़ब्र पर क्यों नहीं जा सकता_

*_👇मज़ार पर चादर चढ़ाना👇_*

_(4) खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मज़ारे अक़दस पर सुर्ख यानि लाल रंग की चादर डाली गई थी_

*_📕 सही मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 677_*

_(5) हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक जनाज़े मे शामिल हुए बाद नमाज़ को एक कपड़ा मांगा और उसकी क़ब्र पर डाल दिया_

*_📕 तफसीरे क़ुर्बती,जिल्द 1,सफह 26_*

*_👇मज़ार पर फूल डालना👇_*

_(6) हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से,एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था,फिर आपने एक तार शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनो क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाख तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी_

*_📕 बुखारी,जिल्द 1,हदीस 218_*

_तो जब तर शाख तस्बीह पढ़ती है तो फूल भी पढ़ेगा और जब इनकी बरक़त से अज़ाब में कमी हो सकती है तो एक मुसलमान के तिलावतो वज़ायफ से तो ज़्यादा उम्मीद की जा सकती है और मज़ार पर यक़ीनन अज़ाब नहीं होता मगर फूलों की तस्बीह से साहिबे मज़ार का दिल ज़रूर बहलेगा_

*_👇मुर्दो का सुनना👇_*

_(7) तो सालेह ने उनसे मुंह फेरा और कहा एै मेरी क़ौम बेशक मैंने तुम्हें अपने रब की रिसालत पहुंचा दी_

*_📕 पारा 8,सुरह एराफ,आयात 79_*

*_तफसीर_*

_हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम क़ौमे समूद की तरफ नबी बनाकर भेजे गए,क़ौमे समूद के कहने पर आपने अपना मोजज़ा दिखाया कि एक पहाड़ी से ऊंटनी ज़ाहिर हुई जिसने बाद में बच्चा भी जना,ये ऊंटनी तालाब का सारा पानी एक दिन खुद पीती दुसरे दिन पूरी क़ौम,जब क़ौमे समूद को ये मुसीबत बर्दाश्त न हुई तो उन्होंने इस ऊंटनी को क़त्ल कर दिया,तो आपने उनके लिए अज़ाब की बद्दुआ की जो कि क़ुबूल हुई और वो पूरी बस्ती ज़लज़ले से तहस नहस हो गयी,जब सारी क़ौम मर गई तो आप उस मुर्दा क़ौम से मुखातिब होकर अर्ज़ करने लगे जो कि ऊपर आयत में गुज़रा_

*_📕 तफसीर सावी,जिल्द 2,सफह 73_*

_(8) जंगे बद्र के दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बद्र के मुर्दा कुफ्फारों का नाम लेकर उनसे ख़िताब किया,तो हज़रत उमर फारूक़े आज़म ने हैरत से अर्ज़ किया कि क्या हुज़ूर मुर्दा बेजान जिस्मों से मुखातिब हैं तो सरकार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि 'एै उमर खुदा की कसम ज़िंदा लोग इनसे ज़्यादा मेरी बात को नहीं समझ सकते'_

*_📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 183_*

_सोचिये कि जब काफिरों के मुर्दो में अल्लाह ने सुनने की सलाहियत दे रखी है तो फिर अल्लाह के मुक़द्दस बन्दे क्यों हमारी आवाज़ों को नहीं सुन सकते_

*_👇क़ब्र वालों का मदद करना👇_*

_(9) और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायेंगे_

*_📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64_*

_हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम की वफात के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक़ अपने सर पर डाली और क़ुरान की यही आयत पढ़ी फिर बोला कि हुज़ूर मैने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मै आपके सामने अपने गुनाह की माफी चाहता हूं हुज़ूर मेरी शफाअत कराइये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आती है कि जा तेरी बखशिश हो गई_

*_📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान,सफह 105_*

_(10) हज़रते इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं जब भी मुझे कोई हाजत पेश आती है तो मैं हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र पर आता हूं,2 रकत नफ्ल पढता हूं और रब की बारगाह में दुआ करता हूं तो मेरी हाजत बहुत जल्द पूरी हो जाती है_

*_📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 1,सफह 38_*

*_👇वहाबी और मज़ार👇_*

_एक सवाल के जवाब पर मौलवी रशीद अहमद गंगोही लिखते हैं कि_

_(11) क़ुबूरे औलिया पर जाना और उनसे फैज़ हासिल करना इसमें कुछ हर्ज़ नहीं_

*_📕 फतावा रशीदिया,जिल्द 1,पेज 223_*

_(12) मौलाना रफ़ी उद्दीन के साथ हज़रत (थानवी) ने सरे हिन्द पहुंचकर शेख मुजद्दिद उल्फ सानी के मज़ार पर हाज़िरी दी_

*_📕 हयाते अशरफ,सफह 25_*

*_थानवी ने लिखा_*

_(13) दस्तगिरी कीजिये मेरे नबी_ 
     *_कशमकश में तुम ही हो मेरे वली_*

*_📕 नशरुत्तबीब फि ज़िक्रे नबीईल हबीब,सफह 164_*

*_मौलवी आरिफ सम्भली ने लिखा है कि_* 

_(14) पस बुज़ुर्गो की अरवाह से मदद लेने के हम मुंकिर नहीं_

*_📕 बरैली फितने का नया रूप,सफह 139_* 

*_मौलवी हुसैन अहमद टांडवी लिखता है कि_*

_(15) हमें जो कुछ मिला इसी सिलसिलाए चिश्तिया से मिला,जिसका खाये उसी का गाये_

*_📕 शेखुल इस्लाम नम्बर,सफह 13_* 

_इतना सब कुछ पढ़ने के बाद आज के दोगले बद अक़ीदों को चाहिये कि सुन्नी से मुनाज़रा करना छोड़ें और जाकर चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जायें और अगर अब भी कुछ शर्म बाकी है तो फौरन अपने दोगले अक़ायद से तौबा करें और सच्चे दिल से मज़हबे अहले सुन्नत वल जमात पर क़ायम हो जायें_

 *Md Ramzan*


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