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कल मज़हब पूछकर जिसने बख्श दी थी जान मेरी...**आज फिरका पूछकर उसने ही ले ली जान मेरी!*

https://amzn.to/3jSGYJX *"अल्लामा इकबाल"*    *ने तकरीबन 80 साल पहले लीखी ये बात कितनी सच है.......* *कल मज़हब पूछकर जिसने बख्श दी थी जान मेरी...* *आज फिरका पूछकर उसने ही ले ली जान मेरी!* *मत करो रफादेन पर इतनी बहस मुसलमानों...* *नमाज़ तो उनकी भी हो जाती है जिनके हाथ नही होते!* *तुम हाथ बाँधने और हाथ छोड़ने पर बहस में लगे हो...* *और दुश्मन तुम्हारे हाथ काटने की साजिश में लगे हैं!* *ज़िन्दगी के फरेब में हम ने हज़ारों सज्दे क़ज़ा कर डाले...* *हमारे जन्नत के सरदार ने तो तीरों की बरसात में भी नमाज़ क़ज़ा नही की!*  *सजदा-ए-इश्क़ हो तो "इबादत" मे "मज़ा" आता है...* *खाली "सजदों" में तो दुनियां ही बसा करती है!* *लोग कहते हैं के बस "फर्ज़" अदा करना है.....* *एैसा लगता है कोई "क़र्ज़" लिया हो रब से!* *तेरे "सजदे" कहीं तुझे "काफ़िर ना कर दें...* *तू झुकता कहीं और है और "सोचता" कहीं और है!* *कोई जन्नत का तालिब है तो कोई ग़म से परेशान है...* *"ज़रूरत" सज्दा करवाती है "इबादत" कौन करता है!* *क्या हु