कब्रिस्तान में अहले कब्र से सलाम करना ।

*बादे वफ़ात मक़बूलाने बारगाह को पुकार सकते हैं?* 01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
*सवाल* : क्या बादे वफ़ात भी मक्बूलाने बारगाह को लफ्जे "या" के साथ पुकार सकते हैं ?

*जवाब* : जी हां । बादे वफ़ात भी मक्बूलाने बारगाह को लफ़्जे "या" के साथ पुकार सकते हैं इस में कोई मुज़ायका नहीं। अल्लाह के मक़बूल बन्दों की शान तो बहुत बुलन्दो बाला है, आम मुर्दो को भी बादे वफ़ात लफ़्जे "या" के साथ पुकारा जाता है और वोह सुनते हैं जैसा कि हदीसे पाक में है : हुजूरे अकरम ﷺ जब मदीनए मुनव्वरह के कब्रिस्तान में तशरीफ़ ले जाते तो कब्रों की तरफ़ अपना रुखे अन्वर कर के यूं फ़रमाते اَلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ يَااَهْلَ الْقُبُوْرِ، يَغْفِرُ اللّٰهُ لَنَا وَلَكُمْ، اَنْتُمْ سَلَفُنَا وَنَحْنُ بِلْاَثَرِ यानी ऐ कब्र वालो ! तुम पर सलाम हो अल्लाह हमारी और तुम्हारी मरिफरत फ़रमाए, तुम लोग हम से पहले चले गए और हम तुम्हारे बाद आने वाले हैं।
*✍️ترمذي*
     इस हदीसे पाक में बादे वफ़ात अहले कुबूर को लफ़्जे "या" के साथ पुकारा भी गया है और उन्हें सलाम भी किया गया है, सलाम उसे किया जाता है जो सुनता हो और जवाब भी देता हो जैसा कि हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान رحمة الله عليه फ़रमाते हैं : कब्रिस्तान में जा कर पहले सलाम करना फिर येह अर्ज़ करना सुन्नत है, इस के बाद अहले कुबूर को ईसाले सवाब किया जाए। 
     इस से मालूम हुवा कि मुर्दे बाहर वालों को देखते पहचानते हैं और उन का कलाम सुनते हैं वरना उन्हें सलाम जाइज़ न होता क्यूं कि जो सुनता न हो या सलाम का जवाब न दे सकता हो उसे सलाम करना जाइज़ नहीं, जैसे सोने वाले और नमाज़ पढ़ने वाले को सलाम नहीं कर सकते।
*✍️मीरआतुल मनाजिह* 2/524

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍️औलिया व अम्बिया को पुकारना कैसा?* 8
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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