कब्र पर अज़ान देना ?

*अज़ाने क़ब्र यानी कब्र पर अज़ान का मसअला*

कुछ लोगों को सिवाये ऐतराज़ करने के और कोई काम नहीं रह गया है ऐसे लोग अगर पैदा होते ही बोल पाते तो अपने मां बाप पर भी ऐतराज़ कर देते कि हमको पैदा क्यों कर दिया इन जैसे लोगों की अक़्ल पर इस क़दर पत्थर पड़ गए हैं कि इन्हें ना तो क़ुर्आन की आयतें दिखाई देती हैं और ना ही हदीसे मुबारका और हमेशा बस एक ही रोना ये शिर्क है ये बिदअत है ये हराम है अब इनको कौन समझाये कि ये भी तो क़ुरूने सलासा में ना थे तो इनका पैदा होना भी तो बिदअत ही हुआ, खैर बात को आगे बढ़ाने से पहले किसी काम के जाइज़ होने की दलील क्या है ये समझ लीजिये,

जिस काम को हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किया वो जाइज़,

जिस काम को हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कहा वो जाइज़,

जिस काम को लोगों को करता देखकर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मना ना किया हो वो भी जाइज़,

*_चलिये अब अज़ाने क़ब्र पर दलील मुलाहज़ा करें_*

1. अपने मुर्दों को लाइलाहा इल्लल्लाह सिखाओ,

📚 अबू दाऊद, जिल्द 2, सफह 522,

अब मुर्दों को कल्मा सिखाने का क्या मतलब ज़ाहिर सी बात है कि मुर्दे सब सुनते समझते हैं और क़ब्र में उससे नकीरैन 3 सवाल करेंगे जिसका उसे जवाब देना पड़ेगा तो फरमाया जा रहा है कि उनको कल्मा सिखाओ यानि तुम उनको बताओगे तो उन्हें जवाब देने में आसानी होगी जैसा कि हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि,

2. जब मुर्दों को दफ्न कर दो तो कुछ देर वहां रुको और उसे तलक़ीन करते रहो कि अब उससे सवाल होगा,

📚 अबू दाऊद, जिल्द 2, सफह 556,

और ये तलक़ीन करना खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से साबित है, पढ़िये,

3. हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जब हज़रत सअद रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को दफ्न किया गया तो बहुत देर तक हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सुब्हान अल्लाह सुब्हान अल्लाह कहते रहे तो सहाबा भी साथ साथ पढ़ते रहे फिर हुज़ूर अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर कहने लगे तो सहाबा ए किराम भी यही पढ़ने लगे फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि इस नेक बन्दे पर क़ब्र तंग हो गयी थी यहां तक कि अल्लाह ने उसकी ये तंगी दूर फरमा दी,

📚 मिश्कात, जिल्द 1, सफह 26,

तो मुर्दों को लाइलाहा इल्लललाह सिखाने के लिए अज़ान से बेहतर क्या होगा कि अज़ान में सब कुछ मौजूद है, अल्लाह की गवाही भी, अज़ान जिस दीन में है वो इस्लाम भी, और खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का तज़किरा भी और यही नहीं क़ब्र पर अज़ान देने के और भी फायदे हैं उन्हें भी पढ़ लीजिये,

*फायदा नं - 1*

इमाम तिर्मिज़ी मुहम्मद इब्ने अली अपनी किताब नवादिरूल उसूल में फरमाते हैं कि जब फरिश्ता क़ब्र में सवाल करता है कि मन रब्बुका यानि तेरा रब कौन है तो शैतान वहां भी पहुंच जाता है और बन्दे को बहकाने की कोशिश करता है लिहाज़ा शैतान को भगाने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि,

4. जब मुअज़्ज़िन अज़ान कहता है तो शैतान हवा छोड़ते हुए भागता है,

📚 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 316,

5. जब अज़ान होती है तो शैतान 36 मील यानि 58 किलोमीटर दूर भाग जाता है,

📚 तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफह 310,

*फायदा नं - 2*

अगर मआज़ अल्लाह सुम्मा मआज़ अल्लाह बन्दे की क़ब्र में अज़ाब आ गया यानि आग में पड़ गया तो उस आग को बुझाने यानि अज़ाबे इलाही को दूर करने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि,

6. जब आग देखो तो तकबीर यानि अल्लाहु अकबर कहते रहो कि ये आग को बुझा देगा,

📗 इब्ने असाकिर,

7. खुदा के ज़िक्र से बढ़कर कोई भी चीज़ अज़ाबे इलाही से बचाने वाली नहीं है,

📚 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 566,

8. जिस जगह अज़ान दी जाती है अल्लाह तआला उस दिन उस जगह को अज़ाब से महफूज़ कर देता है,

📚 मोअज़्ज़म कबीर,

9. जिस जगह ज़िक्रे खुदा होता है फरिश्ते उस जगह को घेर लेते हैं और वहां रहमत की बारिश शुरू हो जाती है,

📚 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफह 567,

*फायदा नं - 3*

मुर्दा जब क़ब्र में पहुंचता है तो ऐसा तंग और अंधेरी जगह देखकर घबराता है लिहाज़ा उसकी घबराहट को दूर करने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में है कि,

10. जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को ज़मीन पर उतारा गया तो उन्हें बहुत घबराहट महसूस हुई तो रब ने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को भेजा और उन्होंने आकर अज़ान दी जिससे कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की घबराहट दूर हो गई,

📗 अबु नुअैम,
📗इब्ने असाकिर,

*फायदा नं - 4*

बन्दे को जब दफ्न करके लोग जाने लगते हैं तो वो बेहद ग़मगीन हो जाता है और अपने अज़ीज़ों को पुकारता है उसके इसी ग़म को दूर करने के लिए अज़ान दी जाती है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि,

11. एक मरतबा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मौला अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को ग़मगीन देखा तो आपने फरमाया कि ऐ अली किसी से कहो कि तुम्हारे कान में अज़ान कह दे कि ये ग़मों को दूर कर देती है,

📚 मुसनदुल फिरदौस,

*फायदा नं - 5* 

और ऐसा करके यानि अज़ान देकर मुर्दे के लिए आसानी पैदा करने की कोशिश करना अल्लाह को बहुत पसंद है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि,

12. फर्ज़ों के बाद किसी मुसलमान का दिल खुश करना अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा पसन्दीदा अमल है,

📚 तिबरानी शरीफ,

13. अल्लाह तआला उस बन्दे की मदद करता है जो अपने मुसलमान भाई की मदद करता है,

📚 मुस्लिम,
📚अबू दाऊद,
📚तिर्मिज़ी,
📚इब्ने माजा,

14. जो शख्स किसी मुसलमान की हाजत पूरी करता है तो अल्लाह उसकी हाजत पूरी करता है और जो शख्स किसी मुसलमान पर से तक़लीफ को दूर करता है तो अल्लाह उसकी तक़लीफ को दूर कर देता है,

📚 अबु दाऊद,

और वहाबियों के मौलवी इस्हाक़ देहलवी ने अपनी किताब में लिखा है कि,

15. कब्र के पास खड़े रहकर दुआ करना सुन्नत से साबित है,

📕 मीता मसाइल,

अज़ान ज़िक्र है और हर ज़िक्र दुआ है जैसा कि रिवायत में है कि मौलाना अली क़ारी मिरकात शरहे मिश्कात में फरमाते हैं कि हर दुआ ज़िक्र है और हर ज़िक्र दुआ है और दुआ की क़ुबुलियत के लिये हदीसे पाक में है कि,

16. दो दुआयें रद्द नहीं की जाती एक अज़ान के वक़्त और दूसरी जिहाद के वक़्त,

📚 अबु दाऊद, जिल्द 1, सफह 237,

17. जब अज़ान दी जाती है तो आसमान के दरवाज़े खुल जाते हैं यानि दुआयें क़ुबूल होती है,

📚 अबु दाऊद, 
📗हाकिम,
📗अबु याला,

अब ऐतराज़ करने वाल कहेगा कि ये हदीस ज़ईफ है वो ज़ईफ है, तो हमसे हर बात पर क़ुर्आन और हदीस से हवाला मांगने वाले कभी खुद भी तो क़ुर्आन और हदीस से हवाला देकर ये साबित करें कि मीलाद मनाना, उर्स मनाना, चादर चढ़ाना, फातिहा दिलाना, सलाम पढ़ना, क़ब्र पर अज़ान देना ये सब शिर्क और बिदअत है, अरे क़ुर्आन से ना सही तो हदीस ही दिखा दो, चलो सही हदीस ना सही तो हसन ही सही, अरे हसन भी नहीं मिल रही तो चलो कोई ज़ईफ हदीस पेश कर दो जिसमे लिखा हो कि क़ब्र पर अज़ान देना शिर्क है हराम है बिदअत है, मगर दिखायेंगे कहां से जब होगी तब तो दिखायेंगे, ये तो सारी ज़िन्दगी बस पागलों की तरह शिर्क शिर्क बिदअत बिदअत चिल्लाते रहेंगे, खैर अज़ाने क़ब्र की ये तमाम बहस आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़िअल्लाहु तआला अन्हु की किताब 
📗"इज़ानुल अज्र फि अज़ानिल क़ब्र" जो कि हिंदी में "अज़ाने क़ब्र" के नाम से छप चुकी है उससे पेश की गई है जिसे इससे भी ज़्यादा तफसील की दरकार हो या अस्ल हदीस देखने का शौक़ हो तो वो अस्ल किताब की तरफ रुजू करें,

📝तालिब ए दुआ👇mohramzan2019@gmail.com

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